यू सी सी के खिलाफ थे पूर्व आर एस एस प्रमुख कांग्रेस नेता मनीष तिवारी का दावा
नईदिल्ली। Lसमान नागरिक संहिता (UCC) के मुद्दे पर इस समय देशभर में बहस छिड़ी हुई है. इस मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार को कई राजनीतिक दलों का समर्थन मिल चुका है तो वहीं कुछ पार्टियां खुलकर इसका विरोध कर रही हैं. इस बीच कांग्रेस के सीनियर नेता मनीष तिवारी ने दावा किया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के पूर्व प्रमुख माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर यूसीसी के खिलाफ थे.
मनीष तिवारी ने दावा किया,’24 अगस्त 1972 को समान नागरिक संहिता पर केआर मलकानी से संघ के पूर्व सरसंघ चालक गुरुजी गोलवलकर का दिलचस्प साक्षात्कार हुआ. इस इंटरव्यू में गोलवलकर ने समान नागरिक संहिता के प्रति अपना विरोध व्यक्त किया था. तिवारी ने इस साक्षात्कार को आधार बनाकर कहा है कि इससे यूसीसी पर गोलवलकर की स्थिति का पता चलता है.
इस मुद्दे पर हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में संबोधन दिया था. उन्होंने कहा था कि आजकल UCC के नाम पर मुसलमानों को भड़काया जा रहा है. परिवार के एक सदस्य के लिए एक नियम और दूसरे सदस्य के लिए दूसरा नियम हो तो कैसे चल पाएगा. ये लोग हम पर आरोप लगाते हैं. ये लोग अगर मुसलमानों के सही हितैषी होते तो मुसलमान पीछे नहीं रहते. सुप्रीम कोर्ट बार बार कह रही है कॉमन सिविल कोड लाओ, लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग ऐसा नहीं करना चाहते.
पीएम मोदी के बयान के बाद ही समान नागरिक संहिता पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है. सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार आगामी मॉनसून सत्र में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का बिल संसद में पेश कर सकती है. सूत्रों के अनुसार सरकार ने संसद के मॉनसून सत्र में समान नागरिक संहिता बिल लाने की तैयारी कर ली है. समान नागरिक संहिता कानून संबंधी बिल संसदीय समिति को भी भेज सकता है.
समान नागरिक संहिता को लेकर सांसदों की राय जानने के लिए संसदीय स्थायी समिति की 3 जुलाई को बैठक बुलाई गई है. इस मुद्दे पर विधि आयोग, कानूनी मामलों के विभाग और विधायी विभाग के प्रतिनिधियों को बुलाया है.
समान नागरिक संहिता में सभी धर्मों के लिए एक कानून की व्यवस्था होगी. हर धर्म का पर्सनल लॉ है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियो के लिए अपने-अपने कानून हैं. UCC के लागू होने से सभी धर्मों में रहने वालों लोगों के मामले सिविल नियमों से ही निपटाए जाएंगे. UCC का अर्थ शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार से जुड़े कानूनों को सुव्यवस्थित करना होगा.
मुस्लिम देशों में पारंपरिक रूप से शरिया कानून लागू है, जो धार्मिक शिक्षाओं, प्रथाओं और परंपराओं से लिया गया है. न्यायविदों द्वारा आस्था के आधार पर इन कानून की व्याख्या की गई है. हालांकि, आधुनिक समय में इस तरह के कानून में यूरोपीय मॉडल के मुताबिक कुछ संशोधन किया जा रहा है. दुनिया के इस्लामिक देशों में आमतौर पर पारंपरिक शरिया कानून पर आधारित नागरिक कानून लागू हैं. इन देशों में सऊदी अरब, तुर्की, सऊदी अगर, तुर्की, पाकिस्तान, मिस्र, मलेशिया, नाइजीरिया आदि देश शामिल हैं. इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए समान कानून हैं. किसी विशेष धर्म या समुदाय के लिए अलग-अलग कानून नहीं हैं.