तो इसलिए आई थी शरद यादव और नीतीश कुमार के रिश्ते में दरार
रायपुर। चंदन कुमार जजवाड़े, बीबीसी संवाददाता, पटना से जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव का 75 साल की उम्र में निधन हो गया है। बीते कुछ साल से शरद यादव बीमार चल रहे थे। वो नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव से लेकर अटल बिहारी तक के क़रीबी रहे थे। कभी केंद्र की राजनीति का प्रमुख चेहरा रहे शरद यादव अपने अंतिम समय में एक तरह से बिल्कुल अलग थलग पड़ गए थे। शरद यादव जेडीयू के 2003 से 2016 तक अध्यक्ष रहे, लेकिन उस पार्टी में भी उनको जगह नहीं मिली।
हालांकि शरद यादव की मौत के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ट्वीट कर अपना शोक जाहिर किया।
उन्होंने लिखा, “पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव जी का निधन दुःखद । शरद यादव जी से मेरा बहुत गहरा संबंध था। मैं उनके निधन की ख़बर से स्तब्ध एवं मर्माहत हूं। वे एक प्रखर समाजवादी नेता थे। उनके निधन से सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। ”
हाल के वर्षों के जॉर्ज फ़र्नांडिस के बाद शरद यादव ऐसे दूसरे नेता हैं, जिन्हें कभी जेडीयू का बड़ा नेता माना जाता था लेकिन उन्हें अपने अंतिम समय में अकेलेपन का शिकार होना पड़ा।
नीतीश से शरद यादव की दूरी वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत के मुताबिक़, “पुरानी और नई विचारधारा की लड़ाई हर पार्टी में हर दौर में देखी जा सकती है । लेफ़्ट हो या राइट यह हर संघर्ष यह जगह, हर घर में होता है। बीजेपी में भी कई नेता बढ़ती उम्र के साथ अकेले पड़े हैं और जेडीयू में पहले जॉर्ज फ़र्नांडिस भी इसके शिकार हुए थे।”
नीतीश और शरद यादव के बीच रिश्ते एक समय में काफ़ी अच्छे थे। शरद यादव 2003 से 2016 तक के जेडीयू के अध्यक्ष रहे लेकिन नीतीश कुमार के साथ रिश्तों में खटास एक तरह से साल 2013 में ही शुरू हो गई थी।
साल 2013 में जब नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी की ओर से चुनाव अभियान की कमान सौंपी गई तो उसके बाद शरद यादव ने एनडीए के संयोजक पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
साल 2016 में नीतीश कुमार ने शरद यादव को अध्यक्ष पद से हटा दिया। इस समय तक नीतीश कुमार का पार्टी में दबदबा बन चुका था।
वरिष्ठ पत्रकार जेपी यादव के मुताबिक़, दोनों नेताओं के बीच पंचायतों में महिला आरक्षण के मुद्दे पर भी सहमति नहीं थी। लेकिन शरद यादव ने उस वक़्त ख़ुद को समझा लिया।
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जेपी यादव कहते हैं, “साल 2013 में नरेंद्र मोदी के पीएम उम्मीदवार बनने के बाद जिस तरह से नीतीश ने एनडीए से नाता तोड़ा था, शरद यादव उसके भी ख़िलाफ़ थे। फिर जब 2017 में नीतीश कुमार वापस बीजेपी के साथ चले गए तो शरद यादव को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई।’
बीजेपी साथ वापस जुड़ने पर शरद यादव ने एक तरह से नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
इस बीच नीतीश कुमार का पार्टी में कद लगातार बढ़ रह था। इसका नतीजा यह हुआ कि शरद यादव को पार्टी से बाहर निकलना पड़ा।