हाथ से हाथ जोड़ो’ से पहले सचिन पायलट दिखाएंगे ताकत, 5 जिलों में करेंगे बड़ी सभाएं, जानिए इसके सियासी मायने
रायपुर। राजस्थान कांग्रेस का आपसी टकराव किसी से छिपा हुआ नहीं है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहा शीत युद्ध पिछले चार साल से जारी है। बीते तीन साल में दो बार पार्टी टूटने की नौबत आई। प्रदेश सरकार गिरते-गिरते बची। पिछले दिनों राहुल गांधी ने गहलोत और पायलट को एकजुट करने की कोशिश की। कुछ समय के लिए माहौल शांत करने में राहुल गांधी कामयाब भी रहे लेकिन अब सचिन पायलट एक बार फिर बड़ा शक्ति प्रदर्शन करने जा रहे हैं। 16 जनवरी से सचिन पायलट 5 दिन तक 5 अलग-अलग जिलों में सभाएं करेंगे। इन्हें किसान सम्मेलन नाम दिया गया है। शक्ति प्रदर्शन की शुरुआत नागौर जिले के परबतसर से होगी।
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पायलट के दौरों से छिड़ी सियासी चर्चाएं
सचिन पायलट प्रदेश में अलग ही क्रेज है। पायलट जिस भी जिले में जाते हैं, भीड़ खींची चली आती है। पायलट के नेतृत्व में लोग राजस्थान के सुनहरे भविष्य को देखते हैं। खासतौर पर प्रदेश के युवाओं में पायलट के प्रति जबरदस्त क्रेज है। उनकी सभाओं में भारी भीड़ जुटने की प्रबल संभावना है। 16 जनवरी को परबतसर में, 17 जनवरी को हनुमानगढ़ जिले के पीलीबंगा में होगी। 18 जनवरी को झुंझुनूं जिले के गुढ़ा में, 19 जनवरी को पाली जिले के सादड़ी में और 20 जनवरी को जयपुर के महाराजा कॉलेज में पालयट की सभाएं होंगी। पार्टी से इतर पायलट के इस स्तर पर होने वाली सभाओं से राजस्थान नई सियासी चर्चाएं छिड़ गई है। राजनैतिक गलियारों में चर्चाएं है कि इस चुनावी साल में पायलट के शक्ति प्रदर्शन के पीछे बड़ा उद्देश्य है।
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बजट से पहले पायलट के शक्ति प्रदर्शन के कई मायने
23 जनवरी से राजस्थान विधानसभा में बजट सत्र शुरू होने वाला है। इससे पहले 16 और 17 जनवरी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने चार साल के कार्यकाल के कामकाज की समीक्षा करेंगे। वो आगामी चुनाव की रणनीति तय करने के लिए दो दिवसीय चिंतन शिविर का आयोजन करेंगे। इससे ठीक पहले सचिन पायलट की ओर से अपने स्तर पर किसान सम्मेलन आयोजित करके शक्ति प्रदर्शन से नई सियासी चर्चाओं को जन्म दे दिया। प्रदेश स्तर पर पायलट को कोई खास तवज्जो ना तो सरकार में दी जाती है और ना ही संगठन में। ऐसे में सचिन पायलट अब अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं। वे ये साबित करना चाहते हैं कि उन्हें नजर अंदाज करना पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है।