आचार्य विद्यासागर की 79वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित, लघु तीर्थ निर्माण को मिले पहली प्राथमिकता

रायपुर । आचार्य विद्यासागर महाराज, जो स्वतंत्र भारत के एक प्रतिष्ठित योगी, साहित्यकार और संस्कृति संरक्षक के रूप में जाने जाते हैं, की 79वीं जयंती का आयोजन पूरे विश्व में भक्तिभाव से किया गया। छत्तीसगढ़ के रायपुर में दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन हुआ।

समर्पण और पूजन की रस्में
दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में आज सुबह जिनालय की पार्श्वनाथ बेदी पर धर्म प्रेमियों ने आचार्य को समर्पित कर पवित्र जल से अभिषेक किया और शांति धारा संपन्न की। इसके बाद देव, शास्त्र, गुरु पूजन और आचार्य विद्यासागर की विशेष पूजा अष्ट द्रव्यों से अर्घ्य समर्पित कर की गई। मंदिर में आचार्य विद्यासागर महाराज के जयकारों से माहौल भक्तिमय हो गया।

लघु तीर्थ निर्माण पर जोर
पूर्व अध्यक्ष संजय नायक ने आचार्य विद्यासागर महाराज द्वारा दिए गए आशीर्वाद और लघु तीर्थ निर्माण के संकल्प को समाज की प्रमुख प्राथमिकता बताया। उन्होंने कहा कि रायपुर में आचार्य के चरणों का सानिध्य मिलना समाज के लिए एक गौरव की बात है। आचार्य के समाधि के पश्चात पहली बार जयंती पर उन्हें स्मरण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। नायक ने बताया कि आचार्य विद्यासागर महाराज के निर्देशानुसार जब तक नवीन जिनालय का निर्माण पूर्ण नहीं होता, तब तक अखंड ज्योति जलाए रखने का संकल्प लिया गया है, जो अभी भी मंदिर में प्रज्वलित है।

आचार्य विद्यासागर का जीवन और योगदान
आचार्य विद्यासागर का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के सदलगा गांव में हुआ था। मात्र 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की और अपने गुरु आचार्य ज्ञानसागर के उत्तराधिकारी बने। पांच दशकों से अधिक समय तक उन्होंने अपने त्याग, तपस्या और ज्ञान से जैन समाज और भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित किया। उनके प्रेरणास्रोत से देशभर में कई प्रकल्प, शिक्षा और संस्कृति से जुड़े संस्थानों की स्थापना हुई।

स्मृति को चिरस्थाई बनाने की मांग
आचार्य विद्यासागर के समाधि दिवस पर उनके अनुयायियों ने सरकार से उनकी स्मृति में डाक टिकट और सिक्के जारी करने की मांग की। उनका मानना है कि इससे आचार्य के असाधारण कार्यों को सम्मान मिलेगा और उनकी स्मृति चिरस्थाई होगी।

समाजजन ने लघु तीर्थ के निर्माण के लिए प्रतिबद्धता जताते हुए इसे अपनी पहली प्राथमिकता बताया और आचार्य के स्वप्न को साकार करने का संकल्प लिया।

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