बारनवापारा बना प्रवासी बाघ का स्थायी ठिकाना

अब बाघिन लाने की तैयारी में वन विभाग

रायपुर । महासमुंद के रास्ते बारनवापारा पहुंचे प्रवासी बाघ ने अभयारण्य के जंगलों को अपनी स्थायी टेरिटरी बना लिया है। 300 किलोमीटर के क्षेत्र में बाघ का नियमित विचरण हो रहा है। बाघ की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महासमुंद और बलौदाबाजार वनमंडल के अधिकारी, कर्मचारी और एनजीओ की टीम लगातार निगरानी कर रही है। इसके तहत एंटी स्नेयर ऑपरेशन भी चलाया जा रहा है। कोरिया जिले में जहर देकर एक बाघ को मारने की घटना के बाद अधिकारी किसी भी खतरे को टालने के लिए सतर्क हैं।

सात मार्च को पहुंचा था बारनवापारा
महासमुंद के रास्ते सात मार्च को यह बाघ बारनवापारा अभयारण्य पहुंचा। वन विभाग की योजना है कि बाघ की स्थायी टेरिटरी बन जाने के बाद इस क्षेत्र में एक मादा बाघ (टाइग्रेस) को लाया जाए ताकि बाघों की संख्या बढ़ाई जा सके। एनटीसीए (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी) के साथ हुई चर्चा के बाद अधिकारी मादा बाघ की तलाश में महाराष्ट्र भी गए थे, लेकिन अभी तक ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

बाघ की सुरक्षा के लिए दिन-रात मॉनिटरिंग
बारनवापारा में बाघ पूरी तरह सुरक्षित है, क्योंकि यहां कोई दूसरा बाघ मौजूद नहीं है। इंसानों से संभावित खतरे के मद्देनजर महासमुंद डीएफओ पंकज राजपूत, एसडीओ मोहम्मद वाहिद खान और बलौदाबाजार डीएफओ मयंक अग्रवाल की निगरानी में टीम लगातार बाघ की स्थिति पर नजर रख रही है। एनजीओ की एंटी स्नेयर टीम दिन और रात में गश्त कर रही है।

चीतल और जंगली सुअर बने भोजन का मुख्य स्रोत
बारनवापारा अभयारण्य में चीतल और जंगली सुअरों की प्रचुरता है, जो बाघ के लिए भोजन का मुख्य स्रोत बने हुए हैं। शिकार के अवशेष जंगल में पाए गए हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि बाघ ने इन्हीं जानवरों का शिकार किया है।

टाइग्रेस लाने की योजना पर जोर
जानकारों का मानना है कि बारनवापारा का माहौल बाघों के लिए अनुकूल है। मादा बाघ को यहां लाने से न केवल बाघों की संख्या में वृद्धि होगी, बल्कि यह क्षेत्र बाघ संरक्षण के लिए आदर्श बन सकता है। बाघों की संख्या बढ़ने से महासमुंद, सारंगढ़-बिलाईगढ़, और गोमर्डा वनमंडल को भी इसका लाभ मिलेगा, क्योंकि नए बाघ टेरिटरी की तलाश में इन क्षेत्रों तक जा सकते हैं।

वन विभाग जल्द से जल्द टाइग्रेस लाने के लिए ठोस कदम उठाने की तैयारी कर रहा है, ताकि इस क्षेत्र में बाघों की संख्या बढ़ाई जा सके और जैव विविधता को समृद्ध किया जा सके।

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