पुण्य और पाप हमारे अच्छे,बुरे कर्मो के कारण बनते है : पुनीत सागर महाराज
रायपुर। आचार्य विद्यासागर महाराज के शिष्य आगम सागर महामुनि, पुनीत सागर महामुनिराज व ऐलक धैर्य सागर महामुनिराज का मंगल प्रवेश राजधानी के आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर (लघु तीर्थ) मालवीय रोड में 2 दिसंबर को हुआ। महाराज के मंगल प्रवेश और पावन सानिध्य से संपूर्ण समाज में उल्लास छा गया।
3 दिसंबर को प्रातः सुबह नित्य अभिषेक, शांति धारा पूजन के पश्चात सुबह 8.30 बजे आचार्यश्री का पूजन अष्ट द्रव्यों से किया गया। तत्पश्चात पुनीत सागर महामुनिराज ने अपने मुखाग्रबिंदु से प्रवचन में बताया कि पाप और पुण्य हमारे अच्छे और बुरे कर्मो कार्यों के कारण बनते है। जैसे हम अपने अपने दैनिक जीवन में अच्छे कार्य करते है देव, शास्त्र, गुरु के बताए मार्ग पर चलते है। तो हमे इसके अच्छे परिणाम इस जीवन के आलावा अगले पर्याय में भी मिलते है। और अगर हम सदा बुरे, पाप के कार्यों में लगे रहते है तो इसके परिणाम हमेशा बुरे मिलेंगे और जब भी कोई जीवन हमे मिलेगा तो चाहे कितने अच्छे कार्य कर लो पहले पूर्व मै किए बुरे कार्यों का परिणाम भोगना पड़ेगा। अच्छे पुण्य कार्यों से आत्मा पवित्र होती है। और पाप कार्यों से दुर्गति होती है। इसलिए जो भी व्यक्ति देव शास्त्र गुरु पर विश्वास रख कर यह वहा नहीं भटकता उसे हमेशा सद्गति प्राप्त होती है। कभी नरक गती नहीं मिलती,अच्छा कुल प्राप्त होता है, नपुंसकता नहीं होती।उच्च कुल की प्राप्ती होती है।घर में हमेशा हर्ष का वातावरण होता है। ठीक इसके विपरीत अगर बुरे कार्यों को करते है तो पिछले बुरे कार्यों को पहले भुगतना पड़ता है नीच कुल में जन्म मिलता है दरिद्रता का जीवन जीना पड़ता है घर में सब बीमार और जन्म से लेकर मृत्यु तक सिर्फ दवाईयो का सेवन करना पड़ता है। इसलिए समय का लाभ लेकर हमेशा लेकर अच्छे कार्य करना चाहिए।
आगम सागर महाराज ने अपने प्रवचन मै बताया कि आचार्यश्री अपने जीवन को लोहे कि तरह जिया। जीवन भर किसी भी सहारे में नहीं रहे। अपने अन्तिम समय में भी वो अपने सभी नियमों का पालन करते रहे। उनकी कृपा से छतीसगढ़ के डोंगरगढ़ में चंद्र गिरी का विशाल तीर्थ बन रहा है। यहां तीर्थ थे नहीं। आज भारत के साथ साथ विदेशों ने भी छत्तीसगढ़ की विशेष पहचान बन गई है। आचार्य श्री इस धरती के ऐसे संत थे जो ख्याति पूजा लाभ से हमेशा दूर रहे। उन्होंने कभी किसी भी धर्म उनके गुरु किसी व्यक्ति को कभी कुछ नहीं कहा। वो स्वयं कम बोलते थे हमेशा उनके काम बोलता था। आज जिस स्थान पर उनकी समाधि है वह छत्तीसगढ़ मै रायपुर के निकट है ये रायपुर वासियों के लिए सौभाग्य की बात है।उनके प्रथम समाधि दिवस के उपलक्ष्य पर 1008 श्री सिद्ध चक्र महा मंडल विधान का आयोजन किया जा रहा है जिस पर ज्यादा से ज्यादा संख्या में धर्म प्रेमी बन्धुओ को भाग लेना चाहिए। साथ ही आचार्य श्री ने राजधानी के आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर को लघु तीर्थ बनाने का को मंगल आशीर्वाद दिया है उसे भी जल्द से जल्द पूरा किया जायेगा। इस अवसर पर समस्त दिगम्बर जैन समाज, महिला मंडल उपस्थित थे।