पेशी की तारीख आई नहीं, और अपीलार्थी को दर्शा दिया अनुपस्थित
राज्य सूचना आयोग में बड़ा गड़बड़झाला, अगली पेशी की तारीख दी 8 अप्रैल 2026
रायपुर । राज्य सूचना आयोग में न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी और अनियमितताओं के गंभीर आरोप सामने आए हैं। मजे की बात यह है कि पेशी 8 जनवरी 2025 को है, और उसमे अपीलार्थी को अनुपस्थित दर्शा दिया गया है। 71 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक केके निगम ने उच्च शिक्षा विभाग से आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी की प्रक्रिया में हो रही लापरवाही और साजिश का आरोप लगाया है।
क्या है मामला
केके निगम ने 15 फरवरी 2022 को सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत जानकारी मांगी थी। मामले में पहली अपील 6 मई 2022 और दूसरी अपील 4 अगस्त 2022 को राज्य सूचना आयोग में दायर की गई। अपील प्रकरण क्रमांक A/3388/2022 की पहली सुनवाई 11 जनवरी 2023 को हुई, इसके बाद 6 अप्रैल, 13 अप्रैल और 16 नवंबर 2023 को सुनवाई हुई।
चार सुनवाइयों के बावजूद प्रतिउत्तर देने में विफल रहने के चलते, पांचवीं सुनवाई 20 जून 2024 को हुई, जिसमें उच्च शिक्षा विभाग का प्रतिनिधि अनुपस्थित रहा। आयोग की वेबसाइट पर यह अनुपस्थिति दर्ज नहीं की गई।
आयोग पर साजिश और अनियमितता का आरोप:
छठी सुनवाई 19 सितंबर 2024 को आयोजित हुई, जहां आयोग ने अपनी वेबसाइट पर केके निगम को अनुपस्थित दर्शाया। इस प्रक्रिया के बाद, आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई, लेकिन आयोग की वेबसाइट पर आगामी तारीख 8 जनवरी 2025 (जो अभी नहीं आई है) को उन्हें अनुपस्थित बताया गया है।
केके निगम ने इसे आयोग द्वारा गहरी साजिश और अन्याय का प्रमाण बताया है। उन्होंने 18 जून 2024 को आयोग को पत्र लिखकर जानकारी दी थी कि प्रतिपक्ष के दोष के बावजूद उन्हें बार-बार निर्दोष साबित करने के मौके दिए जा रहे हैं। इसके विपरीत, प्रकरण क्रमांक A/1036/2019 (कोरोना अवधि) में बिना किसी अवसर के जनसूचना अधिकारी पर ₹25,000 का दंड लगा दिया गया था।
“न्याय का मखौल उड़ाया जा रहा है”:
केके निगम ने अपने पत्र में कहा है कि अत्यधिक विलंब के कारण मांगी गई जानकारी अब निरर्थक हो गई है। उन्होंने मांग की है कि प्रतिपक्ष पर तत्काल दंडात्मक कार्रवाई की जाए। आयोग ने अब मामले की अगली सुनवाई 8 अप्रैल 2026 को निर्धारित की है। इस तारीख तक श्री निगम की उम्र 72 वर्ष से अधिक हो जाएगी, जो न्याय के प्रति आयोग की असंवेदनशीलता को दर्शाता है।
विशेषज्ञों की राय:
आरटीआई कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का कहना है कि सूचना आयोग द्वारा इस प्रकार की देरी न केवल न्याय की भावना के खिलाफ है, बल्कि आरटीआई अधिनियम 2005 की मंशा का भी उल्लंघन है।
यह मामला न्यायिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। श्री निगम जैसे वरिष्ठ नागरिकों को न्याय दिलाने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग जोर पकड़ रही है।