सम्यक चारित्र के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता : मुनि तीर्थप्रेम विजयजी
रायपुर। संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर रायपुर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला जारी है। बुधवार को महामंगलकारी शाश्वत ओली की आराधना के आठवें दिन सम्यक चारित्र की आराधना की गई। तपस्वी मुनि प्रियदर्शी विजयजी ने कहा कि सम्यक चारित्र पद की आराधना से जीव अनादि काल से अवृति के अंदर रहा है वह वृत्ति धर्म में आता है। चारित्र जीवन एकदम निष्पाप जीवन है।
कम से कम एक ऐसा नियम लें जब तक शरीर के अंदर जीव है,कितनी भी विकट परिस्थिति आ जाए लेकिन चारित्र पद की आराधना करनी है। ओजस्वी प्रवचनकार मुनि तीर्थप्रेम विजयजी ने कहा कि आज सम्यक चारित्र की आराधना के दिन संकल्प करें कि जीवन में चारित्र का उदय हो।
एक प्रार्थना परमात्मा से जरूर करना कि जब इस दुनिया में आया था तो सामान्य मनुष्य के रूप में आया था लेकिन जब इस दुनिया से जाऊं तो सामान्य व्यक्ति के रूप में नहीं जाऊं,चारित्र आत्मा के रूप में इस दुनिया से जाऊं, चारित्र के भेष में इस दुनिया से जाऊं। मुनि ने कहा कि आज तक कोई भी तीर्थंकर ऐसे नहीं हुए जिन्होंने चारित्र ग्रहण किए बिना मोक्ष प्राप्त किया हो। मोक्ष में जाना है तो सम्यक चारित्र के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं होता। सबसे पहले आत्मा में ज्ञान का प्रकाश करना होगा।
हमारी आत्मा की हवेली में सबसे पहले ज्ञान का प्रकाश होने से आत्मा के अंदर जमी कर्म की धूल दिखाई देगी और इसे साफ करने नवकारसी करनी पड़ेगी। ऐसे ही अनंत काल की जमी धूल को साफ करने के लिए सिद्धि तप, मासक क्षमण तप करना पड़ेगा। तप करने से ही आत्मा में जमे कर्म की निर्जरा होगी। ऐसे ही संयम धारण करना होगा। संयम आत्मा में नए कर्मों को आने से रोकता है। अरिहंत,सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु तक सभी का प्राण संयम है। यदि ज्ञान बहुत है,आचरण है और संयम नहीं है,यदि तप भी है लेकिन संयम नहीं है तो नए कर्म आएंगे इसलिए आत्मा की शुद्धि के लिए संयम बहुत जरूरी है।