क्या तुलसी दास जी का रामचरित मानस नफरत फैलाती है ?
रायपुर। बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने कहा कि वाल्मीकि रामायण पर आधारित रामचरित मासन समाज में नफरत फैला रहा है। उन्होंने अपने इस बयान पर माफी मांगने से इनकार करते हुए इसी बात को पुनः दोहराया है। उन्होंने कहा कि रामचरित मानस के कुछ अंश समाज की कुछ जातियों के भेदभाव का प्रचार करते हैं। दरअसल, भारत में जातिवाद एक कड़वा सच है। इसे समाप्त करने की कभी किसी भी राजा या राजनीतिज्ञ ने कोशिश नहीं की क्योंकि इसी में उनका हित है। मुगल काल में मुगलों ने इसे बढ़ावा देकर भारतीयों को और भी कई तरह की जातियों में बांटा और इसके बाद जब अंग्रेज आए तो उन्होंने मुगलों से कहीं लोगों को बांटकर शासन किया। ‘बांटो और राज करो’ के सिद्धांत का बड़ा योगदान रहा जो ब्रिटेन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति भी करता था। वर्तमान की राजनीति में भी मुगल और अंग्रेजों की परंपरा जारी है। उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति तो जादिवाद पर ही आधारित है। वहां सत्ता के लिए राजनीतिज्ञ किसी भी हद तक जा सकते हैं। गरीब दलित या ब्राह्मण यह नहीं जानता की हमारी जनसंख्या का फायदा हमें बांटकर उठाया जा रहा है। आजादी के 75 साल में आज भी गरीब ही है।
जातिवाद प्रत्येक धर्म, समाज और देश में है। हर धर्म का व्यक्ति अपने ही धर्म के लोगों को ऊंचा या नीचा मानता लेकिन यह जातिवाद लोगों को हिन्दुओं में ज्यादा नजर आता है। लोगों की टिप्पणियां, बहस या गुस्सा उनकी अधूरी जानकारी पर आधारित होता है। कुछ लोग जातिवाद की राजनीति करना चाहते हैं इसलिए वह जातिवाद और छुआछूत को और बढ़ावा देकर समाज में दीवार खड़ी करते हैं और ऐसा भारत में ही नहीं दूसरे देशों में भी होता रहा है।
अब बात करते हैं रामचरित मानस की, जिसे मुगल काल में श्री तुलसीदासजी ने लिखा था। पहली बात तो यह समझ लेना चाहिए कि यह हिन्दू धर्म का धर्मग्रंथ नहीं है। अन्य हिन्दू धर्मग्रंथों के चुनिन्दा उद्धरण देकर हिन्दुओं में व्याप्त तथाकथित जातीय भेदभाव को प्राचीन एवं शास्त्र सम्मत सिद्ध करने का षड़यंत्र गुलामी के काल से ही जारी है। कभी एकलव्य के अंगूठे बात हो अथवा किसी शम्बूक की दंतकथा हो, श्रवण कुमार की कथा हो या कर्ण की व्यथा हो सभी में जातिवाद ढूंढ लिया जाता है। कथा के आगे पीछे के भाग को छुपाकर और संदर्भों को हटाकर गलत तरीके से यह प्रचारित किया जाता रहा है कि धर्म में जातिवाद शुरू से ही रहा है।