UGC की नई गाइडलाइंस: अब बिना NET बन सकेंगे प्रोफेसर, बस होनी चाहिए ये डिग्री…
नई दिल्ली । UGC (University Grants Commission) ने असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए आवश्यक योग्यता में बड़ा बदलाव किया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार, 7 जनवरी को इस नई गाइडलाइन की घोषणा की। अब NET (National Eligibility Test) पास किए बिना भी असिस्टेंट प्रोफेसर बना जा सकता है, बशर्ते उम्मीदवार के पास आवश्यक शैक्षणिक योग्यता हो। यह कदम उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रक्रियाओं को सरल बनाने और योग्य उम्मीदवारों को बेहतर अवसर देने के उद्देश्य से उठाया गया है।
नए नियम क्या कहते हैं?
नए नियमों के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए UGC-NET पास करना अनिवार्य नहीं होगा। इसके बजाय, अगर किसी उम्मीदवार के पास पीएचडी की डिग्री है, तो वह NET के बिना भी प्रोफेसर बनने के लिए पात्र होगा। इसके अलावा, 75% अंकों के साथ चार साल की अंडरग्रेजुएट डिग्री या 55% अंकों के साथ पोस्टग्रेजुएट डिग्री अनिवार्य होगी।
UGC के अध्यक्ष का बयान
UGC के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने बताया कि यह बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के उद्देश्यों के अनुरूप है। इससे उच्च शिक्षा में विभिन्न विषयों से योग्य और कुशल उम्मीदवारों की भागीदारी बढ़ेगी।
कुलपति बनने के नियमों में भी बदलाव
नए नियमों के अनुसार, विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर बनने के लिए अब केवल अकादमिक क्षेत्र का अनुभव होना जरूरी नहीं है। इंडस्ट्री, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, पब्लिक पॉलिसी, पीएसयू (PSU) और अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी कुलपति बनने के पात्र होंगे। हालांकि, वाइस चांसलर के पद के लिए कम से कम 10 वर्षों का अनुभव आवश्यक होगा।
महत्वपूर्ण बातें
NET की अनिवार्यता समाप्त: असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए NET अब अनिवार्य नहीं।
शैक्षणिक योग्यता: 75% अंकों के साथ 4 साल की UG डिग्री, 55% अंकों के साथ PG डिग्री, और PhD अनिवार्य।
वाइस चांसलर के लिए नए अवसर: विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ अब कुलपति बन सकते हैं।
आयु सीमा: कुलपति पद के लिए उम्र सीमा 70 वर्ष तय की गई है, और एक व्यक्ति अधिकतम दो कार्यकाल तक कुलपति रह सकता है।
नए नियम क्यों हैं महत्वपूर्ण?
यह बदलाव उच्च शिक्षा संस्थानों में योग्य शिक्षकों और विशेषज्ञों की कमी को दूर करने में मदद करेगा। साथ ही, विविध पृष्ठभूमि के विशेषज्ञों को वाइस चांसलर बनने का मौका मिलेगा, जिससे शिक्षा प्रणाली में नई सोच और नवाचार का मार्ग प्रशस्त होगा।