बालासोर ट्रेन दुर्घटना के बाद प्रवासी श्रमिकों को रोजी-रोटी की चिंता सताने लगी

बालासोर । आडिशा के बालासोर ट्रेन दुर्घटना के बाद प्रवासी श्रमिकों को रोजी-रोटी की चिंता सताने लगी है। कई प्रवासी श्रमिक काम करने लायक नहीं बचे, किसी का पैर कटा तो किसी की बांह कट गई है। ओड़िशा के बालासोर जिले के बहानगा बाजार रेलवे स्टेशन पर हुए भीषण रेल हादसे को लगभग एक हफ्ता बीत चुका है। इस हादसे में 288 यात्रियों की मौत हो गई थी और 12 सौ से अधिक घायल हुए थे।
इस हादसे में न जाने कितने ही लोगों ने अपनों को खो दिया।

वहीं, कई लोग अभी भी इस हादसे से उबर नहीं पाए है। इसमें से एक 22 वर्षीय प्रवासी मजदूर प्रकाश राम भी है, जिन्हें एक नई जिंदगी तो मिल गई, लेकिन अब वह काफी डरे हुए है। बिहार के गोपालगंज जिले के पाथरा गांव के रहने वाले प्रकाश को इस हादसे में अपनी एक टांग गंवानी पड़ गई। अब उन्हें यह चिंता सता रही है कि वह रोजी-रोटी के लिए क्या करेंगे?

राम नामक श्रमिक दो सालों से आंध्र प्रदेश में प्रकाशम जिले के ओंगोले शहर में एक सिरेमिक टाइल कारखाने में काम करते थे। कोरोमंडल एक्सप्रेस हादसे के बाद जब उन्हें होश आया तो वह बालासोर जिला अस्पताल के एक बेड पर पड़े हुए थे। हालत गंभीर होने के कारण उन्हें कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया। उनका पैर काफी चोटिल था, जिसके कारण डॉक्टरों को घुटने के नीचे से उनका बायां पैर काटना पड़ा।

अस्पताल के सर्जरी वार्ड में पड़े राम को भविष्य की चिंता सता रही है। परिवार में इकलौता कमाने वाले राम को बिहार छोड़ना पड़ा था, ताकि वह पैसे कमा सके। अब एक कटे हुए पैर के साथ उसे समझ नहीं आ रहा कि वो क्या करें?
वहीं राम की तरह 2 जून की दुर्घटना में घायल हुए अधिकांश लोग बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और झारखंड के प्रवासी मजदूर थे, जो चेन्नई जाने वाली कोरोमंडल एक्सप्रेस और यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस के अनारक्षित और स्लीपर डिब्बों में यात्रा कर रहे थे।

पैसे कमाने के कारण इन राज्यों के सैकड़ों लोग केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश आते है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के एक 25 वर्षीय राजमिस्त्री और पिछले 10 वर्षों से केरल के कोल्लम में काम करने वाले रेजाउल बाफदार इस हादसे में बच तो गए, लेकिन दाहिने हाथ में गहरे घाव के साथ-साथ हड्डी टूट जाने के कारण वह कम से कम एक साल तक कोई काम नहीं कर पाएंगे। रेजाउल भी अपने परिवार में कमाने वाले इकलौते सदस्य है। रेलवे ने भले ही मुआवजे के रूप में 2 लाख रुपये दे तो दिए, लेकिन वह लंबे समय तक नहीं चलने वाला है।

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