ईश्वर के आंनद, स्वामी विवेकानन्द

12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में अवतरित वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली, आध्यात्मिक गुरु, स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम वीरेश्वर रखा गया, किन्तु उनका औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। 30 वर्ष का अल्पायु में उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी जगत के कल्याण के लिए क्रियाशील है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें विश्व धर्म महासभा में 2 मिनट का समय दिया गया था किन्तु उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण का आरम्भ “मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों” के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

अलौकिक, 4 जुलाई 1902 को देवलोकगामी 39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था- “यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।” रोमां रोलां ने उनके बारे में कहा था “उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असम्भव है, वे जहाँ भी गये, सर्वप्रथम ही रहे। हर कोई उनमें अपने नायक का दिग्दर्शन करता था। वे ईश्वर के आनंद, स्वरूप थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी। हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देख ठिठक कर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा-‘शिव!’ यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो।”

अभिभूत, स्वामी विवेकानन्द केवल सन्त ही नहीं, एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। महात्मा गांधी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानन्द के आह्वान का ही फल था। इस प्रकार वे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा के स्रोत बने। उनका विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है। उनके कथन “‘उठो! जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।” अजर-अमर है। जो उनकी जयंती पर आयोजित राष्ट्रीय युवा दिवस पर सार्थक होगा।

यथेष्ट, स्वामी विवेकानंद ने और कहा था, जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी। एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, घृणा मृत्यु है। शक्ति ही जीवन है, दुर्बलता ही मृत्यु है। स्तुत्य, स्वामी जी ने जन जागरूकता बढ़ाने, हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने और राष्ट्रवाद के विचार में अतुलनीय योगदान दिया। जो मानव कल्याण के निहितार्थ सदा-सर्वदा कालजयी है।

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