छत्तीसगढ़ में फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन: वस्तुस्थिति, संभावना और चुनौतियां
-विधु दुबे (पत्रकार)
छत्तीसगढ़, जो भारत के प्रमुख कृषि-आधारित राज्यों में से एक है, में फार्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (FPO) की अवधारणा कृषि को संगठित, सशक्त और टिकाऊ बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। छोटे और सीमांत किसानों को उनकी उपज के लिए बेहतर बाजार, उचित मूल्य और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए FPOs को बढ़ावा दिया जा रहा है।
1. वस्तुस्थिति (वर्तमान स्थिति)
FPO एक ऐसा संगठन है जिसे किसान मिलकर एक सामूहिक इकाई के रूप में बनाते हैं। इसका उद्देश्य उत्पादन, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग, और वितरण से जुड़े कार्यों को संगठित करना है।
छत्तीसगढ़ में लगभग 400 से अधिक FPOs विभिन्न स्तरों पर कार्यरत हैं। ये संगठन मुख्यतः कृषि, बागवानी, डेयरी, मत्स्य पालन, और वनोपज जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
कृषि आधारित FPOs: मुख्य रूप से धान, मक्का, दाल, और तिलहन उत्पादन।
वनोपज आधारित FPOs: लाह, तेंदूपत्ता, महुआ, और साल बीज।
डेयरी और मत्स्य FPOs: दुग्ध उत्पाद और मछली पालन।
संगठन और सहयोग:
राज्य सरकार और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं।
किसान समृद्धि योजना, पारंपरिक कृषि विकास योजना (PKVY), और वन धन योजना के तहत FPOs को प्रोत्साहन।
केंद्र सरकार की 10,000 FPOs योजना के तहत छत्तीसगढ़ को विशेष प्राथमिकता दी गई है।
2. संभावना (संभावित लाभ और विकास के क्षेत्र)
i. सामूहिक विपणन और मूल्य संवर्धन:
FPOs किसानों को सामूहिक रूप से उत्पाद बेचने की सुविधा देते हैं, जिससे बिचौलियों की भूमिका कम होती है और किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलता है।
ii. भंडारण और प्रसंस्करण:
छत्तीसगढ़ में FPOs को गोदाम, कोल्ड स्टोरेज, और प्रोसेसिंग यूनिट्स बनाने में मदद मिल सकती है। इससे फसल नुकसान कम होगा और मूल्य संवर्धित उत्पादों की बिक्री संभव होगी।
iii. निर्यात और उच्च मूल्य वाली फसलें:
छत्तीसगढ़ के किसान जैविक और निर्यात योग्य उत्पादों की ओर बढ़ सकते हैं। FPOs के माध्यम से बाजार और निर्यात के लिए संपर्क स्थापित किया जा सकता है।
iv. सरकारी सहयोग और नीति समर्थन:
राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं के तहत FPOs को आर्थिक सहायता, प्रशिक्षण, और तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है।
v. महिलाओं और आदिवासियों की भागीदारी:
छत्तीसगढ़ में आदिवासी और महिला किसान समूह FPOs के माध्यम से अपनी आय और जीवनस्तर सुधार सकते हैं।
3. किसानों की संख्या और भागीदारी
छत्तीसगढ़ में लगभग 37 लाख किसान परिवार हैं, जिनमें से लगभग 80% छोटे और सीमांत किसान हैं। ये किसान FPOs के मुख्य लाभार्थी हैं क्योंकि वे व्यक्तिगत रूप से बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते।
जिलावार स्थिति:
बस्तर और सरगुजा क्षेत्र: आदिवासी किसानों के लिए वनोपज आधारित FPOs।
रायपुर और दुर्ग क्षेत्र: धान और सब्जी उत्पादन में FPOs की भागीदारी।
महासमुंद और जांजगीर-चांपा: मत्स्य और डेयरी आधारित FPOs।
महिला किसानों की भागीदारी:
महिलाओं द्वारा संचालित महिला स्वयं सहायता समूह (SHG) को FPOs में जोड़ा जा रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।
4. चुनौतियां
अधोसंरचना की कमी: गोदाम, कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण इकाइयों की कमी।
प्रशिक्षण और जागरूकता: किसानों को FPOs के लाभ और संचालन के बारे में सीमित जानकारी है।
वित्तीय समस्याएं: छोटे FPOs को बैंक ऋण और आर्थिक मदद हासिल करने में कठिनाई होती है।
बाजार में प्रतिस्पर्धा: बड़े व्यापारियों और कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल है।
5. समाधान और भविष्य की दिशा
i. जागरूकता अभियान:
सरकार और एनजीओ द्वारा किसानों को FPOs के महत्व और लाभ के बारे में शिक्षित करना।
ii. वित्तीय सहायता:
FPOs के लिए ऋण योजनाओं को आसान और सुलभ बनाना।
iii. प्रौद्योगिकी का उपयोग:
डिजिटल प्लेटफॉर्म और ई-कॉमर्स का उपयोग FPOs की पहुंच बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।
iv. बाजार संपर्क:
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों से FPOs को जोड़ने के लिए योजनाएं लागू की जाएं।
v. सहकारिता मॉडल:
छोटे FPOs को संगठित कर एक सहकारी ढांचे में लाना, जिससे उनकी ताकत और पहुंच बढ़ सके।
छत्तीसगढ़ में FPOs छोटे और सीमांत किसानों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं। सामूहिक प्रयास, सरकारी सहयोग, और बाजार की समझ के साथ, FPOs न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होंगे, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाएंगे। हालांकि चुनौतियां मौजूद हैं, लेकिन सही दिशा में प्रयास और योजनाबद्ध दृष्टिकोण से FPOs कृषि क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।