भाजपा हाईकमान किसी भी प्रकार की कोताही बरतना नहीं चाहता
नई दिल्ली/ भोपाल । हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में मिली हार के बाद भाजपा को अपना सबसे मजबूत गढ़ मप्र भी हाथ से छिटकता दिख रहा है। ऐसे में भाजपा हाईकमान किसी भी प्रकार की कोताही बरतना नहीं चाहता है। इसके लिए संघ को मोर्चे पर तैनात कर दिया गया है। संघ ने अभी हालही में हाईकमान को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। जिसमें भाजपा की स्थिति खराब बताई गई है। इस दौरान प्रदेश में वर्चस्व की जंग और बगावत भी रूकने की बजाय और तेज होती जा रही है। जिसको लेकर हाईकमान गंभीर है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पूरी रिपोर्ट के साथ तलब किया है। सूत्रों की मानें तो हाईकमान मप्र में सत्ता और संगठन का चेहरा बदलने की तैयारी कर चुका है। माना जा रहा है कि इस महीने बड़ा बदलाव सामने आ सकता है।
दरअसल, इस साल मप्र सहित पांच राज्यों के विधानसभाओं के साथ ही अगले साल की शुरुआत में देश में लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा ने 11 और 12 जून को भाजपा शासित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उप-मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई है। इस बैठक में गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, पार्टी के महासचिव बीएल संतोष और राज्य संगठनों के सचिव भी शामिल होंगे। भाजपा की इस बैठक को लेकर कई तरह की चर्चा है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर अचानक इस बैठक को बुलाने की क्या जरूरत पड़ी? इस बैठक में क्या-क्या हो सकता है?
11 और 12 जून को दिल्ली में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उपमुख्यमंत्रियों की बैठक होगी। पार्टी के नेता का कहना है कि सभी मुख्यमंत्रियों और उप-मुख्यमंत्रियों को बैठक में पूरी तैयारी के साथ आने के लिए कहा गया है। पार्टी और संबंधित राज्य की सरकार के बीच तालमेल, सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार, आगामी लोकसभा चुनाव की रणनीति पर रिपोर्ट भी मांगी है। इस बैठक को लेकर सबकी नजर मप्र पर है। इसकी वजह यह है की मप्र में भाजपा सरकार और संगठन के बीच बड़ी खाई बन गई है। इस कारण भाजपा में जबरदस्त बगावत देखी जा रही है। इसकी कई रिपोर्ट हाईकमान तक पहुंच चुकी है। ऐसे में मप्र के बहाने भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस बात की पुष्टि कर लेना चाहता है कि जहां-जहां सरकार है, वहां पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक चल रहा है या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं की लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही पार्टी के अंदर का कलह बाहर आने लगे और इससे नुकसान उठाना पड़ जाए।
भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता के अनुसार, लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा शासित राज्यों की सरकार में बड़े बदलाव हो सकते हैं। हर जाति, क्षेत्र को प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है। बड़े चेहरों को बड़ी जिम्मेदारियां भी दी जा सकती हैं। मप्र में यह बदलाव विधानसभा चुनाव से पहले होना है, ताकि एंटी इनकम्बेंसी, भितरघात और बगावत को कम किया जा सके। भाजपा सूत्रों का कहना है कि संघ ने सुझाव दिया है कि अगर प्रदेश में एंटी इनकम्बेंसी, भितरघात और बगावत से निपटना है तो सत्ता और संगठन दोनों का चेहरा बदलना होगा। इसलिए माना जा रहा है कि इस बैठक में हाईकमान बड़ा फैसला ले सकता है।
सूत्रों का कहना है कि मप्र में सत्ता और संगठन में बदलाव की संभावनाओं को लेकर भाजपा के तीन शीर्ष नेताओं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष की बैठक के बीच चर्चा हो चुकी है। भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है की हाईकमान फिलहाल सीएम बदलने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगा। फिर भी भावी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष के लिए जिन नामों पर चर्चा की गई है उनमें नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, प्रहलाद पटेल और राजेंद्र शुक्ला शामिल हैं। इनमें से किसको सीएम और किसको अध्यक्ष बनाया जाएगा इसका कोई संकेत नहीं दिया गया है। जानकारों का कहना है कि सीएम के बारे में तो कुछ नहीं कह सकते, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की जगह पहले अध्यक्ष रह चुके नरेंद्र सिंह तोमर या संगठन के जानकार कैलाश विजयवर्गीय को कमान दी जा सकती है। भाजपा ने तीन महीने पहले राजस्थान, बिहार सहित चार राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष बदले हैं, जबकि चुनावी राज्य छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष को आठ महीने पहले ही बदल दिया था। शर्मा का 3 साल का कार्यकाल इसी साल 15 फरवरी को पूरा हो चुका है। उनके एक्सटेंशन की कोई घोषणा अब तक नहीं हुई है। इससे पहले जिस राज्य में भी अध्यक्ष को एक्सटेंशन दिया, वहां इसकी घोषणा कर दी गई थी। बिना घोषणा के प्रदेश अध्यक्ष के इतने लंबे एक्सटेंशन का दूसरा उदाहरण नहीं है।