COP29: अधिकांश G20 देशों को जलवायु कार्रवाई तेज करने की जरूरत

बाकू/नई दिल्ली : COP29: क्लाइमेट अकाउंटबिलिटी मैट्रिक्स के अनुसार, अधिकांश जी20 सदस्यों को, जिनमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब और तुर्की जैसे देश शामिल हैं, जलवायु कार्रवाई में प्रमुखता से तेजी लाने की जरूरत है। स्वतंत्र थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायनरमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) ने मंगलवार को वार्षिक जलवायु सम्मलेन कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP29) में एक नया अध्ययन ‘आर जी20 कंट्रीज डिलीवरिंग ऑन क्लाइमेट गोल्स? ट्रैकिंग प्रोग्रेस ऑन कमिटमेंट्स टू स्ट्रेंथन द पेरिश एग्रीमेंट- द क्लाइमेट अकाउंटबिलिटी मैट्रिक्स’ को जारी किया है। यह ग्लोबल साउथ के लिए अपनी तरह का पहला मूल्यांकन करने वाला उपकरण है, जो जलवायु शमन से आगे जलवायु पक्षों पर विभिन्न देशों के प्रदर्शन का विश्लेषण करता है, जिसमें अनुकूलन और कार्यान्वयन के साधन शामिल हैं।

जी20 में शामिल उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, जापान और जर्मनी ने, खास तौर पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग और व्यापक क्लाइमेट गवर्नेंस फ्रेमवर्क की स्थापना के माध्यम से, उल्लेखनीय प्रयास किए हैं। भले ही अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ने जलवायु अनुकूलन के प्रयास किए हैं, लेकिन प्रमुख जलवायु समझौतों से उनके अनियमित जुड़ाव और कमजोर महत्वाकांक्षाएं चिंता का कारण हैं। अध्ययन में पाया गया है कि ग्लोबल साउथ में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने प्रमुख समझौतों में सक्रियता से भाग लेकर, घरेलू स्तर पर उचित प्रयास करके और अपने दायित्वों का पालन करके जलवायु कार्रवाई में महत्वपूर्ण प्रगति की है। भले ही देशों ने महत्वपूर्ण प्रगति की हो, लेकिन निश्चित रूप से क्षेत्रवार स्थिति को मजबूत करना चाहिए और महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाइयों के लिए सहायक वातावरण बनाना चाहिए।

डॉ. अरुणाभा घोष, सीईओ, सीईईडब्ल्यू, ने कहा, “जलवायु कॉप महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने, कार्रवाई को सक्षम करने और सबसे महत्वपूर्ण बात, सभी को जवाबदेह बनाने के बारे में हैं। भले ही कॉप28 ने कई वादे किए थे, लेकिन इसने विकसित देशों को छोड़ दिया था। इसलिए, COP29 निश्चित तौर पर जवाबदेही के बारे में होना चाहिए। इसे नेट-जीरो की दिशा में रफ्तार को तेज करना चाहिए। सबसे बड़े ऐतिहासिक उत्सर्जकों को अन्य की तुलना में तेजी से आगे बढ़ना होगा और अब अपने उत्सर्जन को घटाना होगा। COP29 को जलवायु वित्तपोषण की मात्रा और गुणवत्ता दोनों को बढ़ाना चाहिए। जैसा कि हम नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (एनसीक्यूजी) पर चर्चा करते हैं, लेकिन सवाल यह नहीं है कि कितना जरूरी है, बल्कि यह है कि यह कितने भरोसेमंद तरीके से उपलब्ध कराया जाएगा। अंत में, कॉप29 को सबसे सुभेद्य लोगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। वही सबसे गरीब हैं जो जलवायु की चरम घटनाओं से सर्वाधिक प्रभावित हैं, जिसके कारण अर्थव्यवस्थाएं पटरी से उतर जाती हैं और अन्य सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में प्रगति उलट जाती है। COP29 को जवाबदेही पर खरा उतरना चाहिए, महत्वाकांक्षाएं बढ़ानी चाहिए, भरोसेमंद और उत्प्रेरक जलवायु वित्तपोषण के लिए जोर देना चाहिए और सर्वाधिक जोखिम वालों कीरक्षा करनी चाहिए।”

सीईईडब्ल्यू मैट्रिक्स ने इन देशों का पांच महत्वपूर्ण विषयों – अंतरराष्ट्रीय सहयोग, राष्ट्रीय उपाय, क्षेत्रीय मजबूती, सक्षमकर्ता और जलवायु अनुकूलन प्रयास – और 42 संकेतकों के आधार पर मूल्यांकन किया है। यह न्याय और साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों एवं संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों को ध्यान में रखता है। देशों को नेतृत्वकर्ता, उचित प्रयास, सीमित प्रयास और सुधार की आवश्यकता के तहत वर्गीकृत किया गया है। निष्कर्ष बताते हैं कि इस जलवायु आपातकाल के दौरान कॉप29 को जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।

निश्चित तौर पर जवाबदेही दिखाई जानी चाहिए:
1.जलवायु कार्रवाई में तेजी लाना: मैट्रिक्स में जी20 सदस्य व्यापक रूप से पर्याप्त और सीमित प्रयासों के अंतर्गत आते हैं। वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक रूप से जुड़े हैं और उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण प्रयास भी दिखाए हैं, लेकिन वे क्षेत्रवार मजबूती नहीं दिखाते हैं या महत्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई के लिए अपर्याप्त वित्तपोषण, क्षमता या प्रौद्योगिकी की चुनौती है। कुल मिलाकर अन्य सदस्यों के बीच यूरोपीय संघ (ईयू), दक्षिण कोरिया, भारत, जर्मनी और चीन पर्याप्त प्रयास दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में अन्य विकासशील देशों की तुलना में ब्राजील और भारत का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर है, जबकि दक्षिण अफ्रीका मजबूत घरेलू जलवायु शासन और क्लाइमेट डिस्क्लोजर दिखाया है। लेकिन सऊदी अरब और तुर्की जैसे प्रमुख जीवाश्म ईंधन पर निर्भर अर्थव्यवस्थाएं सभी विषयों में सीमित प्रयास या सुधार की आवश्यकता वाली श्रेणी में आती हैं।

2.महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाना: संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट के अनुसार, अगर 2025 तक आने वाले नए एनडीसी में महत्वाकांक्षा में वृद्धि और तत्काल कार्रवाई नहीं होती है तो वैश्विक तापमान इस सदी के दौरान 2.6 से 3.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। देशों को जलवायु कार्रवाई और महत्वाकांक्षाओं में तत्काल वृद्धि करने और यूएनएफसीसीसी दायित्वों में शामिल होने और उनका पालन करने की आवश्यकता है।

यहां पर भारत ने नेतृत्व दिखाया है। उदाहरण के लिए, सीईईडब्ल्यू के एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि भारत की जलवायु नीतियों का प्रभाव महत्वपूर्ण है। 2020 और 2030 के बीच बिजली, आवासीय और परिवहन क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय सौर मिशन, उजाला योजना और ईवी के लिए फेम योजना जैसी भारत की नीतियां कोई भी नीति न होने के परिदृश्य की तुलना में उत्सर्जन को लगभग 4 बिलियन टन तक कम कर देंगी। यह कमी 2023 में यूरोपीय संघ के लगभग 1.6 गुना कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन के बराबर है। इन नीतियों ने भारत को अपने ऊर्जा मिश्रण में अक्षय ऊर्जा की उच्च हिस्सेदारी की ओर बढ़ा दिया है, इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में वृद्धि हुई है और घरेलू एयर कंडीशनिंग व प्रकाश व्यवस्था में ऊर्जा दक्षता में सुधार हुआ है। हालांकि, भारत की अक्षय ऊर्जा को 1,500 गीगावाट से आगे बढ़ने पर भूमि, जल और जलवायु चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

COP29: 3.नुकसान और क्षति पर बेहतर आंकड़े: जिसे मापा जा सकता है, उसे पूरा किया जा सकता है। 2050 तक बुनियादी ढांचे, मानव स्वास्थ्य और कृषि को होने वाली हानि व क्षति की वैश्विक लागत का आकलन बताता है कि यह प्रति वर्ष 1.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर और 3.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच बढ़ेगा। साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने और लचीलापन लाने व वित्त प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए, हानि व क्षति के विभिन्न पहलुओं पर आंकड़े और अंतर्दृष्टियां महत्वपूर्ण हो जाती हैं। हालांकि, सीईईडब्ल्यू के हालिया अध्ययन में पाया गया है कि सभी देशों में दर्ज की गई सभी जलवायु घटनाओं में से 65 प्रतिशत में आर्थिक नुकसान के आंकड़े ही नहीं है। यह संख्या कम विकसित और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों के लिए काफी ज्यादा है, जहां पर 89 प्रतिशत घटनाओं में आर्थिक नुकसान के आंकड़े नहीं है। यह आवश्यक वित्त की मात्रा और प्रवाह के बारे में सूचित निर्णयन को सीमित करता है। हानि व क्षति के लिए पारदर्शिता ढांचे के निर्माण के लिए विभिन्न संस्थानों – वैज्ञानिक निकायों, अनुसंधान संस्थानों, कार्यान्वयन एजेंसियों और दाताओं की क्षमताओं का लाभ लिया जाना चाहिए।

4.वित्त: COP29 को एक नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (NCQG) पर निर्णय लेना होगा। उपरोक्त सभी बिंदुओं पर जवाबदेही सुनिश्चित करने में वित्त एक प्रमुख प्रेरक है। 2020 तक निर्धारित शुरुआती 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष वित्त से कहीं अधिक की आवश्यकता है। पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पाने के लिए विकासशील देशों (चीन को छोड़कर) को 2030 तक प्रति वर्ष कुल 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है, जिसमें बाहरी स्रोतों से आने वाला प्रति वर्ष 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल है। NCQG की प्रक्रिया में इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि अधिकांश कम आय वाले विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को बुनियादी विकास लक्ष्यों और जलवायु कार्रवाई के बीच प्राथमिकता निर्धारण में सख्त चुनौती का सामना करना पड़ता है। भारत ने अपने प्रस्तुतिकरण में कहा है कि विकसित देशों को अपनी जलवायु वित्तपोषण प्रतिबद्धताओं को सक्रियता के साथ पूरा करना चाहिए और NCQG मुख्य रूप से अनुदान और किफायती वित्त के माध्यम से प्रति वर्ष कम से कम 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होना चाहिए।

COP29 को निश्चित तौर पर इन जवाबदेही अंतरों को भरना चाहिए:
1.नेट-जीरो की दिशा में बदलाव की गति तेज करनी चाहिए: सीईईडब्ल्यू अध्ययन के अनुसार, नेट-जीरो तक पहुंचने में विकसित देश, विकासशील देशों के 33 वर्ष की तुलना में, औसतन 51 वर्ष ले रहे हैं और वे 2030 तक 43 प्रतिशत कटौती का लक्ष्य पूरा करने के रास्ते पर भी नहीं हैं। इसके अलावा, अमेरिका और कनाडा जैसे प्रमुख विकसित देशों की 2020 से पहले की अवधि में जलवायु समझौतों में भागीदारी अनियमित रही है और उनकी महत्वाकांक्षाएं भी कमजोर हैं। विकसित दुनिया को उत्सर्जन की अपनी समय सीमा में आगे लाने और विकासशील देशों को सामाजिक-आर्थिक विकास चुनौतियों को दूर करने के लिए पर्याप्त कार्बन स्थान मुक्त करने की जरूरत है।

COP29: 2.वितरण और निष्पक्षता के अतिमहत्वपूर्ण अंतरों को भरने के लिए जलवायु वित्तपोषण की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में सुधार करना चाहिए। किसी भी विकसित देश ने अपने वादे के अनुसार 100 प्रतिशत धनराशि का भुगतान नहीं किया है। इसके अलावा, फ्रांस, जर्मनी और जापान को छोड़कर, सभी विकसित देश योगदान में अपने उचित हिस्सेदारी में बहुत पीछे रहे हैं। NCQG को गुणात्मक और मात्रात्मक आवश्यकताओं से जोड़ना चाहिए। साथ में, एक लक्ष्य और ढांचा भी उपलब्ध कराना चाहिए, जिसमें विभिन्न देशों की जलवायु योजनाओं को सहायता देने के वार्षिक 100 अरब अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य और प्रतिबद्धता से मिली सीख का ध्यान रखा जाए। विकसित से विकासशील देशों में आने वाले जलवायु वित्त प्रवाह में सार्वजनिक अनुदान पूंजी या अन्य रूपों की सार्वजनिक पूंजी के अनुदान समकक्ष, साथ में निजी पूंजी प्रवाह शामिल होना चाहिए, जिसे ये जुटाते हैं, जो सामूहिक रूप से विकासशील देश की जलवायु वित्तपोषण आवश्यकताओं में योगदान करते हैं। इसके अलावा, ये जलवायु वित्त प्रवाह नए और अतिरिक्त होने चाहिए, और मौजूदा विकास सहायता का पुनर्वर्गीकरण नहीं होना चाहिए।

3.COP29 को सबसे सुभेद्य की सुरक्षा को निश्चित तौर पर प्राथमिकता देनी चाहिए। विकसित देश अपनी घरेलू अनुकूलन प्रयासों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, लेकिन विकासशील देश, जो जलवायु घटनाओं का खामियाजा भुगतते हैं, उनके प्रभावों को घटाने के लिए अपेक्षाकृत कम सक्षमता रखते हैं। हालांकि, शमन कार्यों को अनुकूलन की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक जलवायु वित्तपोषण मिलता है। इसके अलावा, हानि व क्षति (वर्तमान में 702 मिलियन अमेरिकी डॉलर) के लिए कुल प्रतिबद्धता लगातार आवश्यकताओं से कम है, और किसी भी जी20 देश द्वारा सबसे अधिक वादा सिर्फ 112 मिलियन अमेरिकी डॉलर है। इस असंतुलन को दूर करने के लिए, जलवायु वित्तपोषण योगदान को शमन से आगे बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि अनुकूलन और हानि व क्षति में मजबूत प्रयास शामिल हो पाएं। हानि व क्षति का सामना करने के लिए एक फंड की स्थापना कॉप28 का एक महत्वपूर्ण परिणाम था। कॉप29 को हानि व क्षति निधि के माध्यम से ‘कौन भुगतानकर्ता है’ और ‘कौन प्राप्त कर्ता है’ का जवाब देना चाहिए। सर्वाधिक सुभेद्य को वास्तविक धन, संसाधनों और क्षमता के साथ सुरक्षा दी जानी चाहिए।

नोट: अफ्रीकन यूनियन को जी20 में 2023 में शामिल किया गया था। इसके कारण एक समूह के रूप में कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। इसलिए इस अध्ययन में अफ्रीकन यूनियन पर विचार नहीं किया गया है।

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